वात्सल्य रस से सींचता है माँ का आंचल :डाॅ मुकेश कुमार
करनाल 25 फरवरी ( पी एस सग्गू)
माँ के ममत्व पर विशेष बातचीत में
हिंदी साहित्य विशेषज्ञ डाॅ मुकेश कुमार कहा माँ का ममत्व नैसर्गिक होता है। उसमें किसी भी प्रकार का बनावटीपन नहीं होता। माँ एक ऐसी शक्ति का संचार अपनी संतान में भर देती है, जिससे वह अपने जीवन को कभी असफल नहीं समझता। माँ के ममत्व का आँचल कितना निर्मल होता है, उसमें किसी भी प्रकार का दूषितपन नहीं होता। माँ का ममत्व कितना भार उठाकर एक सही दिशा का मार्ग प्रशस्त करता है। बचपन की लोरी की तरंग जब आकाश में गूंजती है, तो बादलों के गर्जना की ध्वनि भी फीकी पड़ती है। और माँ के मीठे-मीठे सरगम के गीतों की माला, जीवन को प्रकाशमय बना देती है। माँ के ममत्व का पाठ जीवन की गहराई वाली नदी को भी तैरने की शक्ति देकर उसे पार करवा देता है। माँ का हृदय पुष्पों की कोमल -कोमल पंखुड़ियों से भी कोमल होता है, जिसमें वात्सल्य रस का वह मिठास जीवन को मधुर बनाता है। माँ के वात्सल्य रस में ऐसी खुशबू
होती है, जिससे फूलों के चटकीले रंग की खुशबू भी फीकी पड़ती जाती है। माँ एक वह अनमोल खजाना है जो हर किसी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। माँ और बच्चे का संबंध भी नैसर्गिक होता है, अगर बच्चे को दर्द है, तो माँ को पीड़ा। इन दोनों का कितना अनमोल रिश्ता है। पूरे इस संसार में एक माँ शब्द कितना मीठा है,जो हर पीड़ा की दवाई है।
एक प्रखर विद्वान प्रो मोहिनी सिहं का कथन है-” माँ का ममत्व वह औषधि है, जो शरीर में होने वाली हर पीड़ा का निवारण करती है, राहत देती है। ” इसलिए माँ की सेवा करने पर स्वर्ग के दरवाजे भी खुल उठते है।माँ की सेवा भक्तिरस का आस्वादन है,माँ का वात्सल्य प्रेम सृजन का महासमुद्र है, जिसमें सम्पूर्ण रस तथा भाव तरंगों की भांति उन्मज्जित तथा निमज्जित होते रहते है। हमें माँ की सेवा में सदैव हाज़िर रहना चाहिए।