नेत्रदान में हरियाणा नंबर वन, देहदान-अंगदान में बिग जीरो
बीस बरस में मात्र पांच अंगदान, 15 देहदान, धर्मगुरुओं को आगे आकर फैलानी होगी जागृति
करनाल 29 जून ( पी एस सग्गू)
मरणोपरांत नेत्रदान और जीते जी अंगदान, देहदान की बात शायद ही कम लोगों को हजम हो लेकिन सच ये है कि नेत्रदान में जहां करनाल प्रदेश में अव्वल है वहीं अंगदान व देहदान में प्रदेश व देश में पिछड़ा हुआ है, कारण ये है कि मरणोपरांत नेत्रदान के लिए लोग अब अपने आप माधव नेत्र बैंक के पदाधिकारी राजकुमार, चरणजीत बाली, अनु मदान व अन्य साथियों को फोन करते हैं वैसे अंगदान व देहदान के लिए नहीं करते, एक कारण तो ये है कि परिजनों की इच्छा से अंगदान व देहदान जीते जी ही हो सकता है लेकिन परिजन अंतिम समय में वेंटीलेटर पर लेटे हुए मरीज के अंगदान व देहदान की अनुमति नहीं देते , उनकी ओह पोह की स्थिति होने के कारण अंगदान व देहदान में पिछड़ेपन की स्थिति बनी हुई है। करनाल के माधव नेत्र बैंक के जाने माने नेत्र रोग चिकित्सक व देश में नेत्र विशेषज्ञों के पैनल को लीड करने वाले डा. बीके ठाकुर के नेतृत्व में माधव नेत्र बैंक की टीम ने जहां करनाल के साथ- साथ प्रदेश में छह हजार नेत्रदानियों का आंकड़ा पार किया है वहीं पिछले 20 बरसों में अंगदान और देहदान में स्थिति चिंताजनक है, अंगदान केवल पांच और देहदान 15 ही हुए हैं। अंगदान करने वाले करनाल व आसपास के हैं जबकि देहदान 20 बरस में हरियाणा में केवल 15 लोगों ने ही किए हैं । देहदान केवल 15 लोगो ने, यानी बीस साल में देहदान की एक व्यक्ति की भी औसत नहीं और अंगदान तो एक तरह से शून्य की स्थिति के बराबर ही खड़ा है। इसका कारण जागृति का जबरदस्त अभाव है।
लीवर के सात हिस्से और दिल के चार वाल्व
डा. बीके ठाकुर बताते हैं कि आम इंसान का लीवर डेढ किलो का होता है, इसे छह लोगों में फिट किया जा सकता है। दोनों गुर्दें काम आते हैं, दोनों आंखें, हडि्डयां, दिल के चारों वाल्व्, दोनों फेफड़े, जलने वाले केस में त्वचा यानी स्किन भी काम आती है। देहदान का अर्थ यही है कि इंसान के जरूरी अंगों को निकालकर उसका इस्तेमाल कर लिया जाता है और बॉडी को अग्नि के समर्पित कर दिया जाता है जबकि अंगदान का अर्थ कोई जरूरी अंग का दान होता है, जैसे जीते जी किड़नी वगैरा।
देहदान में इन अंगों से इतने लोगों का होता है भला
लीवर- 6 लोगों का
आंखें- 2 लोगों का
किड़नी- 2 लोगों का
फेफड़े- 2 लोगों का
दिल- 4 लोगों का
देहदान के लिए चार लोगों के होते हैं साइन
बड़े अस्पतालों में वेंटीलेटर पर मरीज का खर्चा प्रतिदिन 50 हजार या उससे अधिक होता है। परिजनों को वेंटीलेटर पर आखिरी सांसे गिन रहे मरीज को देखकर एहसास होता है कि हमारा मरीज बचेगा नहीं लेकिन फिर भी उनकी देहदान में रूचि नहीं होती, या फिर उनमे ये आशा रहती है कि परिजन बच सकता है, इसलिए वे पीछे हट जाते हैं। इसके लिए लोगों को संजीदगी से सोचना चाहिए। देहदान करते वक्त डॉक्टर्स की टीम सहित चार लोगों के साइन होते हैं, उसके बाद दिल्ली एम्स या चंडीगढ़ में ये प्रक्रिया अंजाम में लाई जाती है।
धर्मगुरु आह्वान करें तो देहदान-अंगदान का बढ़ेगा रेशो
नेत्रदान पर मुहिम चलाकर अपने साथियों सहित माधव नेत्र बैंक का सपना साकार करने वाले डा. बीके ठाकुर की मानें तो देहदान के लिए धर्मगुरु का आह्वान सबसे अधिक कारगर है। धर्मगुरुओं ने ही नेत्रदान के अभियान में पूरा साथ दिया था, उनके आह्वान से जनता को असर होता है और वे पुनीत व पावन कार्य समझकर इसे करते हैं अन्यथा उन्हें लगता है कि परिजनों की देहदान या अंगदान करने से हमें पाप लगेगा, इसलिए वे कदम पीछे हटा लेते हैं। नेत्रदान पर जब डा. बीके ठाकुर ने अपनी टीम के साथ मुहिम चलाई थी तो उन्होंने लोगों की मरणोपरांत आंखें दान करने के बाद अंधा पैदा होने वाली की भ्रांति का सफाया करने में धर्मगुरुओं का ही सहारा लिया था।