जिसमें हित का भाव हो वही साहित्य है – डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा

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जिसमें हित का भाव हो वही साहित्य है – डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा
साहित्य भावना, कल्पना तथा आदर्श की बात करता है। – डॉ लाल चंद गुप्त मंगल
 हिंदी साहित्य में आत्मियता,मानवता और अपनापन – डॉ रामपाल सैनी
डीएवी पीजी कॉलेज में हिंदी साहित्य : विचारधारा और संस्कृति विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का हुआ आयोजन।
करनाल 21अप्रैल ( पी एस सग्गू)
डीएवी पीजी कॉलेज में निदेशक उच्चतर शिक्षा हरियाणा के निर्देशन एवं कॉलेज के हिंदी विभाग की ओर से हिंदी साहित्य, विचारधारा और संस्कृति विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का शुभारंभ विधिवत रूप से महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र की कार्य परिषद के सदस्य डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के हिंदी विभाग के पुर्व अध्यक्ष डॉ लाल चंद गुप्त, आचार्य महावीर प्रसाद, वरिष्ठ साहित्यकार करनाल, प्राचार्य डॉ रामपाल सैनी द्वारा माँ शारदे के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।सभी अतिथियों का स्वागत प्राचार्य डॉ रामपाल सैनी, कार्यक्रम के संयोजक डॉ संजय जैन, सह-संयोजक डॉ ऋतु कालिया, डॉ मुकेश कुमार द्वारा फुलदान भेंट कर किया गया। 
प्राचार्य डॉ रामपाल सैनी ने कहा कि हिंदी साहित्य और इसकी विचारधारा ने समस्त हिंदी प्रेमियों को वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित किया है। हिंदी का इतिहास गौरवशाली है। जिसके बिना संचार संभव नहीं है। हिंदी की विचारधारा में आत्मियता, गंभीरता, मानवता और अपनापन है, जो राष्ट्र को ऐकीकरण की ओर ले जाती है। हिंदी का विकास जितना ज्यादा होगा उतना ही ये राष्ट्र विकसित होगा। मुख्य वक्ता डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा ने कहा कि साहित्य सकारात्मक ऊर्जा देता है, दिशा देता है, जिज्ञासा देता है, जिस में हित का भाव हो वही साहित्य है। साहित्य ने संस्कृति को बनाया है। जब हम संस्कृति भूल जाते हैं तो विचारधारा हमें बांटती है, तब साहित्य हमें जोड़ता है, संस्कृति, विचारधारा को लेकर चलने का साहस साहित्य में है।वशिष्ट अतिथि डॉ लाल चंद गुप्त मंगल ने कहा कि जहां शब्द और अर्थ का सहभाव होगा वही साहित्य है। जहां साहित्य में संतुलन है, वही साहित्य है। 
साहित्य भावना, कल्पना, आदर्श की मांग करता है, उसके पीछे विचारधारा होनी चाहिए, अतित, वर्तमान और भविष्य में गोते लगाकर साहित्य बन जाता है। वरिष्ठ साहित्यकार महावीर प्रसाद शर्मा ने कहा कि पृथ्वीराज से लेकर आज तक लिखा गया साहित्य है। उन्होंने कहा कि कवि की वाणी ही साहित्य है। 
जो संस्कृति और विचारधारा है, जो किसी कवि द्वारा संसार के नियमों में बंधकर नहीं लिखी जा सकती। भगवान परशुराम कॉलेज कुरुक्षेत्र के प्राचार्य डॉ शीशपाल ने कहा कि साहित्य में अनेक विचारधारा आई, हमारी विचारधारा हमारी संस्कृति से बनती है, और संस्कृति समानता लाती है, जिसमें साहित्य का योगदान है। द्वितीय शत्र के मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ प्रेम तिवारी ने कहा कि विचारधारा अपनी दुनिया को देखने का दृष्टिकोण देती है, ‌जिसको कबीर दास जैसे संत ने नई रोशनी दी। उन्होंने कहा कि जो कला को जानता है, वही कला के मूल्य को समझता है। तृतीय शत्र में वशिष्ट अतिथि एमपीएन कॉलेज मुलाना के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ सुरेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि साहित्य विचारधारा को बढ़ावा देता है, जिससे संस्कृति का विकास होता है, जो समाज में संचार की प्रक्रिया को बढ़ावा देने में अहम है। तृतीय शत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ रविन्द्र गासों ने कहा कि साहित्य का आदमी कभी सेवानिवृत्त नहीं हो सकता, इसलिए साहित्य मानवता को भी संतुलित करता है। इस शत्र में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय करनाल के प्रवक्ता डॉ नवीन बत्रा, दयाल सिंह कॉलेज करनाल के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ रणधीर सिंह, डॉ बलबीर सिंह, डॉ जय कुमार, आईबी कॉलेज पानीपत के हिंदी विभाग की प्रवक्ता डॉ शर्मिला यादव ,आरकेएसडी कॉलेज कैथल के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ ओपी सैनी, गुरु नानक खालसा कॉलेज करनाल के हिंदी विभाग के प्रवक्ता डॉ बीर सिहं, राजकीय महाविद्यालय घरौड़ा के डॉ सुरेश शर्मा ने शोध पत्र प्रस्तुत कर अपने विचार रखें। कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य डॉ. रामपाल सैनी, कार्यक्रम के संयोजक डॉ संजय जैन, सह- संयोजक डॉ ऋतु कालिया ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह् तथा अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया। मंच संचालन डॉ ज्योति मदान ने किया। इस कार्यक्रम में भारतवर्ष की विभिन्न युनिवर्सिटी, कॉलेजों के बुद्धिजीवी, रिसर्च स्कॉलर, शोधार्थीयों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए।  इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के सभी स्टाफ सदस्य भी उपस्थित रहे।

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