आयुर्वेद में हर रोग का इलाज, आज के परिवेश में इंसान खुद अपनी सेहत का दुश्मन- नाड़ी वैद्य आर्य सत्य प्रकाश नाना जी यज्ञ से बारिश करते और रुकवाते थे, नाड़ी पर धागा बांधकर पहचान लेते थे हर रोग को

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आयुर्वेद में हर रोग का इलाज, आज के परिवेश में इंसान खुद अपनी सेहत का दुश्मन- नाड़ी वैद्य आर्य सत्य प्रकाश

नाना जी यज्ञ से बारिश करते और रुकवाते थे, नाड़ी पर धागा बांधकर पहचान लेते थे हर रोग को

करनाल 20 ( पी एस सग्गू)

इंसान का कर्म उसकी सबसे बड़ी पूंजी है, समय का सदुपयोग सबसे बड़ी उर्जा और साफ नीयत से कर्म करते हुए भगवान हवन यज्ञ पर विश्वास सबसे बड़ी शक्ति। हम बात कर रहे हैं देश के जाने माने नाड़ी वैद्य और युवा आजाद हिंद फौज के संचालक आर्य सत्यप्रकाश की। बचपन में अपने स्वर्गीय नाना मेहर सिंह को जब उन्होंने लोगो के हाथ पर धागे बांधकर बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज करते देखा तो उन्हें आयुर्वेद की शक्ति पर गहरे से विश्वास हुआ। उन्होंने गुरुकुल सिंहपुरा से स्वामी इंद्रवेश के गहरे दोस्त स्वामी चंद्रवेश जी आचार्य की रहनुमाई में आयुर्वेद की पढ़ाई लिखाई यानी बीएएमएस की तो पराये दर्द को अपना समझते हुए हर बीमारी का नाड़ी देखकर मर्ज ढूंढा और उनका कर्म नाड़ी देखकर रोग पकड़ना और सदा के लिए रोग भगाना है, इसी कर्म को करते हुए उन्हें 35 वर्ष से अधिक समय हो गया है। रोहतक में नाड़ी कायाकल्प के नाम से उनका अस्पताल, फार्मेसी व गौशाला है। वे अंग्रेजी की बजाय संस्कृत में बात करना पसंद करते हैं। उन्हें भाषा के स्तर पर अंग्रेजी का भी ज्ञान है लेकिन संस्कृत उनकी प्रिय भाषा है। पाखंड का विरोध और कर्म की महता को मानने वाले नाड़ी वैद्य आर्य सत्य प्रकाश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली की तारीफ करते हैं।

करनाल में एक निजी होटल में एक कार्यक्रम में शिरकत करने आए नाडी वैद्य सत्य प्रकाश आर्य ने मुलाकात में बताया कि यदि इंसान संयमित जीवन जीए, खान पान का ध्यान रखे, सुबह चार बजे से अपनी दिनचर्या शुरू कर व्यायाम करे, शाम सात बजे से पहले रात का सादा सात्विक खाना खाए, दिन में पौष्टिक भोजन के अलावा, फल, सलाद, जूस आदि का सेवन कर खुद को प्रसन्न रखे तो उसके पास कोई भी बीमारी नहीं आएगी। हर बीमारी का इलाज आयुर्वेद में संभव है, लोग अपने खान-पान  और शरीर का ध्यान नहीं रखते, अपनी आदतों को बदलते नहीं, बीमार होने पर तुरंत एल्यूपैथी दवा लेते हैं, उन्हें उस समय आराम हो जाता है और वे समझते हैं कि बीमारी हमेशा के लिए भाग गई लेकिन सच इससे कोसों दूर है, इंसान की अपनी कमी से ही बीमारियां पनपती हैं।

रही मेरी बात तो मैं, नाड़ी की भाषा बचपन में ही समझने लग गया था, असल में मेरे नाना स्वर्गीय मेहर सिंह जी अनपढ़ होते हुए भी धागा बांधकर नाड़ी देखते थे, उन्होंने मुझे समझाया कि नाड़ी अपने आप ही हर रोग के बारे में बताती है। वे  हाथ पर धागा बांधकर नुस्खा बताते थे। उनके नुस्खे आयुर्वेदिक पुस्तक चरख संहिता से मिलते जुलते मिलते हैं।  उन्होंने अनपढ़ होते हुए गीता के भजन लिखे, रामायण भजनों में लिखी , यही नहीं धार्मिक काव्यात्मक संग्रह लिखे और मेरे पिता स्वर्गीय रामनारायण आर्य पेशे से मास्टर थे, उन्होंने एमए संस्कृत, एमए पॉलिटिक्ल साइंस तक पढ़ाई की थी,  यज्ञ द्वारा वर्षा  करवाते भी थे और रोकते भी थे। अपने गुरु,  स्वामी चंद्रवेश आचार्य के सानिध्य में मैने बीएएमएस की पढ़ाई की और अपने गांव से लेकर हर जगह आयुर्वेद पद्धति से लोगों का इलाज किया, जब मेरी बनाई दवाई से लोगों को राहत मिलने लगी तो फिर दूर दराज से लोग आने लगे, रोहतक में नाड़ी कायाकल्प के नाम से मेरा अस्पताल है, दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर, मुंबई के अलावा भी मैं मरीजों का इलाज नाडी देखकर ही करता हूं। सुबह तीन बजे उठता हूं और रात आठ बजे सो जाता हूं। सुबह चार बजे हवन यज्ञ से दिनचर्या शुरू होती है। उन्होंने कोरोना काल के बाद सभी के स्वास्थ्य के लिए एक साल तक सूर्य के निमित अश्वमेघ यज्ञ किया ताकि सभी स्वस्थ रहें और उसका परिणाम सकारात्मक रहा। मां बाप दोनों अध्यापक थे, उन्होंने मुझे सिखाया कि जीवन पाखंड से नहीं, कर्म और यज्ञ से चलता है, इंसान का मन पवित्र और नीयत साफ होनी चाहिए, यही कारण है कि मैं अपने जीवन में हर जरूरतमंद की मदद करना अपना धर्म समझता हूं। किसी भी व्यक्ति की नाड़ी उसके शरीर की हर बात बयां करती है, उससे पता चल जाता है कि उसे क्या बीमारी है और उसका क्या इलाज होना चाहिए। अपनी फार्मेसी में हर बीमारी की दवा का इलाज है।

भारत मां के लाल सुभाष चंद्र बोस के गहरे अनुयायी

मां जननी भारत मां के सपूत सुभाष चंद्र बोस के जीवन से गहरे रूप से प्रभावित होकर युवा आजाद हिंद फौज के  संचालक नाड़ी वैद्य आर्य सत्यप्रकाश का कहना है कि राजनीतिक विद्वेष के कारण उन्हें गाजियाबाद छोड़ना पड़ा, क्योंकि युवा आजाद हिंद फौज के संचालक के रूप में उनके पीछे पुलिस पड़ गई, उनका कूसूर यही था कि जो काम सरकार के नुमांइंदों को करना था वो उन्होंने  खुद अपने साथियों की मदद से करना शुरू कर दिया था, चाहे वो गलियों की सफाई को, गलियों में लाइट लगवाना हो या फिर जनता हित में जुड़े अन्य काम। सुभाषचंद्र बोस के अलावा वे देश की आजादी के असली दीवानों की दिल से कद्र करते हैं।

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