करनाल में परियोजना कर्मियों की देशव्यापी हड़ताल को लेकर जिले की आशा वर्कर्स, मिड-डे-मील वर्कर्स, आंगनवाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स कर्ण पार्क में इकट्ठा हुई और अपनी मांगों को लेकर कमेटी चौक तक प्रदर्शन किया। मांगो का ज्ञापन तहसीलदार को प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री के नाम सौंपा। परियोजना कर्मियों को सम्बोधित करते हुए सीटू के जिला प्रधान सतपाल सैनी व सचिव जगपाल राणा, व मधु शर्मा, रूपा राणा व बिजनेश राणा ने कहा कि हमारा देश आजादी के बाद सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। कोविड-19 महामारी और देश के बड़े हिस्से की नौकरी और आय का नुकसान हुआ। कोरोना की दूसरी लहर ने हमारे स्वास्थ्य ढांचे की पोल खोल दी है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाने और बहुमुल्य जिंदगियों के नुकसान को दुख के साथ याद किया जा सकता है। लॉकडाउन व आर्थिक मंदी के कारण बड़े पैमाने पर नौकरियों व आजीविका का नुकसान हुआ परिणामस्वरूप देश में बड़े पैमाने पर कुपोषण और गरीबी बढ़ी।
स्वास्थ्य संकट और कुपोषण को दूर करने के लिए सरकारों के प्रयास पुरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं व फ्रंटलाइन वर्कर्स पर निर्भर थे। इन फ्रंटलाइन वर्करों का एक बड़ा हिस्सा जो सरकार व लोगों के बीच की कड़ी है, स्कीम वर्कर्स है। 10 लाख आशा व फैसिलेट्स ने बिना छुट्टी के चौबीसों घण्टे करके घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने, कोविड संक्रमण मामलों की रिपोर्ट करने, टेस्ट करवाने, संक्रमितों की चिकित्सा सहायता प्राप्त करने में मदद, रोगियों की निगरानी करने, ठीक होने वाले रोगियों का फॉलोअप आदि किया जो अब भी जारी है। ये काम 8-9 घण्टे की टीकाकरण ड्यूटी के ईलावा है। लगभग 27 लाख मिड-डे-मील वर्कर्स स्कूल जाने वाले बच्चों को राशन की आपूर्ति करती हैं और सामुदायिक केंद्रों व क्वारन्टीन केंद्रों पर काम करती हैं। उन्हें समय-समय पर स्कूल में साफ-सफाई व रखरखाव करने पर मजबूर किया जाता है।
उन्होंने कहा कि 26 लाख से ज्यादा आंगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर्स आशा वर्करों के साथ मिलकर समान कर्तव्य पालन कर रहीं हैं और लाभार्थियों के घर-घर जाकर राशन वितरित कर रही हैं। इन परियोजना कर्मियों को आज तक श्रमिकों का दर्जा तक नहीं दिया गया और न ही न्यूनतम वेतन दिया जाता बल्कि सरकार कॉरपोरेट और गैर सरकारी संगठनों से जुड़े विभिन्न उपायों एवं नीतियों को पेश करके इन परियोजनाओं को निजीकरण करने के लिए तत्पर है। केंद्र सरकार राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण तथा व्यवसायीकरण में नीति आयोग के प्रस्तावों, नई शिक्षा नीति आदि में कॉरपोरेट को शामिल करने से इन योजनाओं को खत्म करना चाहती है। इन्होंने कहा कि तीन कृषि कानून विशेषकर आवश्यक वस्तु अधिनियम, जोकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, को लागू करना आईसीडीएस और एमडीएमएस जैसी योजनाओं के लिए घातक सिद्ध होगा। तमाम परियोजना कर्मियों ने 27 सितम्बर को किसानों के भारत बन्द को समर्थन देते हुए इसमे भाग लेने का निर्णय लिया।
परियोजनाकर्मियों की प्रमुख मांगें
1. 45 में श्रम सम्मेलन की सिफारिशों को लागू करते हुए आशाओं, मिड डे मील, आंगनवाड़ी वर्करों व हेल्परों को पक्का कर्मचारी बनाया जाए न्यूनतम वेतन 24000 दिया जाए एवं सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ दिए जाए। सबके लिए ग्रुप गुणवत्ता पूर्वक स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाई जाए एवं स्वास्थ्य को अधिकार बनाया जाए। अलार्म को स्थाई बनवाया जाए। तुरंत प्रभाव से स्कूल खोले जाए वह बच्चों के लिए स्कूल में भोजन बनाने का काम शुरू किया जाए मिड डे मील योजना में डीबीटी बंद हो केंद्रीय रसोई घर पर रोक लगे। मजदूर विरोधी चारों कोड रद्द हो तथा किसान विरोधी कृषि कानून रद्द किए जाए। मिड डे मील वर्कर्स के परिवार को प्रतिव्यक्ति 10 किलोग्राम अनाज मुफ्त दिया जाए। सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों व सेवाओं के निजीकरण बन्द हो। आशा वर्करों को हेल्थ वर्कर्स का दर्जा दो। गम्भीर रूप से बीमार एवं दुर्घटनाग्रस्त आशाओं को सरकार के पैनल अस्पतालों में इलाज कज सुविधा दी जाए। आशा वर्करों को स्थाई ग्राम स्तरीय कर्मचारी बनाया जाए। आंगनवाड़ी वर्करों से बिना संसाधन के ऑनलाइन के काम का दबाव न बनाया जाए। 2018 में हुए मुख्यमंत्री के फैसलों को लागू किया जाए। आंगनबाड़ी केंरों का किराया ग्रामीण क्षेत्र में 2000 वे शहरी क्षेत्र में 5000 लागू किया जाए।
इन कर्मचारियों नेताओं ने किया संबोधित
करतार सिंह, फूल सिंह श्योकन्द, रामफल दलाल, कश्मीर सेलवाल, कामरेड जगमाल सिंह, जोगा सिंह, कृष्ण शर्मा, सुशील गुज्जर, सर्वेश राणा, सुमन सुभरी, सुरेशो, रौशनी, सरोज, रीना, नीलम, मन्जू फुसगढ, ममता, मधु शर्मा, सन्तोष, शिमला, शारदा, सुदेश, कमलेश व अनीता ने परियोजनाकर्मियों को संबोधित किया।