*निमोनियां से नहीं बल्कि फेफड़ो में रक्त का थक्का जमने से अधिक लोग मारे गए !*
मरीज थ्रोम्भो एमबोलिक डिस आर्डर, पराएमर्ली इनफ्रेनेट्री डिसआर्डर, पल्मोनिरी एम्बोलिजिम का भी होता है शिकार
कोरोना के मरीजों को ठीक होने के छह सप्ताह बाद भी मंडराता है खतरा
खून को पतला करने की दवा लेना जरूरी है कोविड़ मरीजों को
करनाल, 13 जून (शैलेन्द्र जैन): कोविड़ महामारी को लेकर लगातार स्थितियां साफ होती जा रही है। जहां एक तरफ नई-नई बातें सामने आ रही है। वहीं पर कोरोना से ठीक होने के बाद जिस तरह से लोगों की मौत हार्टअटैक, फेफड़ों में खून के जमाव के कारण हो रही है। उससे चिकित्सकों के सामने नई चुनौतियां सामने आ रही है। पिछले दिनों में जिस तरह से कोरोना के बाद छह सप्ताह तक का समय बीत जाने के बाद युवाओं की मौत कार्डियक रेस्ट तथा फेफड़ों में थक्का जमने की वजह से हुई। उसके रहते नई चीजें सामने आई। कोरोना को जहां पहले निमोनिया समझा जा रहा था। वहीं पर अब नई परिभाषा सामने आ रही है। कोरोना का मरीज थ्रोम्भो एमबोलिक डिस आर्डर का शिकार हो जाता है। वही पर उसको पराएमर्ली इनफ्रेनेट्री डिसआर्डर भी हो जाता है। कहा जाता है कि पिछले दिनों एक युवती को खून का थक्का जमने की शिकायत हुई, बाद में उसे खून को पतला करने का इंजैक्शन दिया गया और वह ठीक हो गई। पिछले दिनों में डॉक्टर कोरोना का निमोनिया समझकर इलाज करते रहे। इस मुद्दें को लेकर प्रदेश की जानी-मानी डाक्टर प्रभजोत कौर से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि कोरोना के अन्दर सबसे पहले श्वसन तंत्र प्रभावित होता है। फेफड़ों के अन्दर छोटी-छोटी खून की नलियां होती है। यहां पर कोरोना संक्रमण के दूसरे तीसरे दिन ही छोटे-छोटे थक्के जमने लगते है। छह-सात दिन बाद मरीज को जब इस्ट्रीरॉयड दिया जाता है तो उसके और खून का थक्का जम जाता है। यदि ऐसे में उसे खून को पतला करने का इंजेक्शन दे दिया जाएं तो वह ठीक हो सकता है। इसमें पिछले दिनों आईबर मेकटेन की गोलियां भी सामने आई। उन्होंने बताया कि पोस्ट कोविड़ में एम्बोलिजिम के कारण पल्मोनिरी एम्बोलिजिम हो जाता है। अर्थात खून के थक्के जमने लगते है। उन्होंने बताया कि बचाव के लिए जरूरी है कि कोविड़ के संक्रमण के दूसरे-तीसरे दिन से ही डॉक्टरों को खून को पतला करने की दवा देनी चाहिए।
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ज्यादा बीमार होने पर ही जाएं हॉस्पिटल : डा. प्रभजोत कौर ने बताया कि कोरोना पॉजिटिव होने के बाद एक टेस्ट लें जिसके चलते छह मिनट तक सैर करवाएं यदि ऑक्सीजन सेचुरेशन 94 से कम होता है ओर नाड़ी की गति 100 से 110 तक चली जाती है तो 100 से 110 या इससे अधिक चली जाती है तो उसे डॉक्टर की सलाह पर हॉस्पिटल में भर्ती हो जाना चाहिए। इसके अलावा खून को पतला करने के लिए आईबर मेकटेन की दवा भी देनी चाहिए। वहीं पर इस्ट्रीरॉयड के लिए भी नई गाईड़लाईन बन रही है। जिसके चलते 5 दिन तक इस्ट्रीरॉयड नहंी देना चाहिए। अब तो यहां तक कहा गया है कि 10 दिन के बाद इस्ट्रीरॉयड देना चाहिए। कोरोना से ठीक होने के बाद साईटोकाईंड स्ट्रोम के कारण भी लोग मारे जाते है।
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हाईप्रोटीन डाईटस के साथ-साथ ज्यादा पानी पीएं : कोरोना के प्रभाव से बचना है तो अधिक प्रोटीन डाईटस देनी चाहिए। चीनी को बिल्कुल छोड़ देना चाहिए। तुलसी, गिलोय, नीम, अश्वगंधा, हल्दी, तिल, अलसी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। इसमें पानी का जितना प्रयोग किया जाएं उतना ठीक है। इसमें भींगी हुई मूंगफली के छिलके और बादाम के साथ-साथ अखरोट भी काम आ सकते है। ब्लैक फंगस से बचने के लिए सेंधा नमक, हल्दी और तेल लगाकर मसूड़ों की मालिश करनी चाहिए। इसमें व्यायाम सबसे ज्यादा जरूरी है। वहंी पर दहीं खाना भी नहीं छोडऩा चाहिए। क्योंकि दही ज्यादा प्रोबायोटिक है। घर में गूगल की धुनी देने के साथ कमरे में गाय के घी की ज्योत जलाने से भी काफी हद तक पॉजिटिव एनर्जी ओर बीमारी से लडऩे की शक्ति मिलती है।