शिष्ट समाज का खलनायक
वह “ अन्य ”
कहानी- प्रोफेसर डॉक्टर जवाहर लाल विज
भई, यह तो गज़ब हो गया। “लोहे वाला विरेंद्र था ना । उसकी बीवी संध्या, पड़ोसी फोटोग्राफर राधे श्याम के साथ भाग गई।“ चक्कर तो था दोनों में । लेकिन अपने बीवी बच्चे छोड़ भाग ही जाएंगें, ऐसा तो कभी सोचा ना था। सभी पड़ोसियों और रिश्तेदारों की तो पांव तले जमीन खिस्क गई। इतनी बेशर्मी। लोग लज्जा की तनिक चिंता नहीं। कॉलोनी में माहतम। हर बंदा चौकन्ना। हर बीवी की पति पर कड़ी नज़र। प्रत्येक पति की पड़ोसी पुरुष पर शक की निगाह। आखिर यह “अन्य ” इतना हावी कैसे? व्यक्ति सुध-बुध ही खो बैठे। औरत की बेहयाई तो देखो ! मायके वाले बड़े सरमायेदार। जिंमीदारा और आढ़त भी। पति निहायत शरीफ। लोहे का अच्छा कारोबार। माकूल आमदनी। स्कूटर, गाड़ी सब कुछ तो है घर में। अच्छा खान-पान भी। दो बच्चे। लड़की छठी में और लड़का चौथी में। फिर यह कैसी आग ? आखिर क्या सूझा ? पड़ोसी फोटोग्राफर संग नया घर बसाने की सोची । और साला निर्लज्ज् राधेश्याम ! सारे परिवार की नाक ही कटवा डाली। सुंदर बीवी। 400 गज़ में आलीशान घर। बारहवीं पढ़ रही बेटी जवान हो चली। बेटा भी दसवीं में। स्कूल में कैसे जा पाएंगें यह बच्चे ? क्या जवाब है इनके पास ।
लुधियाना के बिजली बोर्ड का ओवरसीयर । शादी हुए सिर्फ छह महीने । चार बच्चों की मां , झारखंडी मुटटली कलूटी नौकरानी संग भाग निकला। बडा भाई शहरी का नामी डॉक्टर। खूब तलाश की गई। नहीं मिले। अरसा बीत गया। डॉक्टर साहब बीवी बच्चों संग छुटि्टयों में शिमला, फिर वहां से नारकंडा । मजेदार सफ़र। बर्फीली ठंड। रास्ते मे पेट्रोल पंप पर गाड़ी रोकी। 1500 रुपए का पेट्रोल डालो। अटैन्डेंट बोला, पैसे अंदर बाबू जी को। अंदर गए, तो होश फाख्ता । अरे, नरेश ! तू यहां ! क्या हालत बना ली है तूने अपनी। कहां-कहां नहीं खोजा तुझे, मेरे भाई । मां जी कष्ट ना सह पाई । चल बसी। नरेश एकदम स्तब्ध । सिट्टी बिट्टी गुम। आंखें नम। अचानक फूट-फूट रोने लगा। बाजू पकड़ उसके घर गए। एक कमरे का घर। झारखंडी की गोद में नन्हा बच्चा। गर्भ में एक और। दो दिन पास के होटल में ठहरे। बहुत समझाया। नरेश बोला, अब यही संसार है । मैं खुश हूं अपनी इस दुनियां में । प्लीज….
युगों-युगों से इस “अन्य” की खलनायकी रंग दिखाती रही है। बहुत से शिष्ट परिवारों की “टूट”का जिम्मेदार यह “अन्य”ही तो है। तीखे पंजे लिए हर वकत नए शिकार की तलाश । यह तीव्रगामी खूंखार “अन्य” कभी भी, किसी पर भी हमला कर निशाना बना सकता है ।
पदासीन राजनेता, बड़े अफ़सरान, सरमायेदार, उच्च घराने, कार्पोरेट दिग्गज, झुग्गड़वासी सभी इस “अन्य “ का शिकार। यह “अन्य” हमेशा ताक लगाए रहता है। शिकार को, दिमागी कमजोर देख धावा बोल, धर दबोचता है। दिलो दिमाग पर पूरा कब्जा । समझबूझ नदारत । होशो-हवास गायब ।
कोई भी नहीं जान पाया इस रूहानी, अदृश्य “अन्य” के रहस्य को । यह तो वाकई में अज़ब-गज़ब बेबूझ पहेली ।
एक नज़र “अन्य “ की शिकार, अनन्य हस्तियों पर भी तो डालो । हाय राम !
राष्ट्रपति कैनेडी
राष्ट्रपति बिल क्लिंटन “अन्य “ लैविन्सकी के माया जाल में
एम.जी. रामाचंद्रन
जवाहर लाल नेहरू “ अन्य “ एडविना माउन्टबैटन के प्रेम पाश में
धर्मेंद्र
अभिताभ बच्चन “ अन्य “ रेखा से प्रेम प्रसंग
कमोबेश, हम सभी शिकार हैं, इस “अन्य “के
मैं भी, आप भी, वह भी और वह भी ।
ठीक कहा ना !
प्रोफेसर डॉक्टर जवाहर लाल विज
एमए (अर्थशास्त्र,इंगलिश,राजनी
सामाजिक, मानवशासत्र,