Spread the love

भोर की ओर-  डा. मुकेश अग्रवाल

ज्ञानदीप की ओर चलें

वही हमारा ठौर चलें

अज्ञान की बात ये बीते

चलो भोर की ओर चलें ।

सत्य की राह प्रखर हो

मन में आनंद निर्झर हो

प्रेम का सागर जहां हो

ऐसे पथ की ओर चलें ।

अंधेरे वन में भटके थे

ना जाने कहां अटके थे

दिख रहा प्रकाश वहां

उसी दिशा की ओर चलें ।

कोई तो सहारा मिलेगा

चलने पर मार्ग दिखेगा

बिन रुके बिन थमे हम

स्व-लक्ष्य की ओर चलें ।

सूरज तो निकला हुआ

प्रकाश भी बिखरा हुआ

छोड़ तमस की गलियां

आ उजाले की ओर चलें ।

ज्ञानदीप की ओर चलें ।

विशेष- कवि डा. मुकेश अग्रवाल के आठ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। डा. मुकेश अग्रवाल बालों के जाने माने डॉक्टर व वीएचसीए फाउंडेशन के एमडी हैं। 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top