राष्ट्रीय चेतना की कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान
पुण्यतिथि पर विशेष बातचीत: डॉ मुकेश कुमार (हिंदी साहित्य विशेषज्ञ)
राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की अलख जगाने वाली कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी कविताएं व कहानियां लिखती थी। कुछ आलोचकों ने उनकी सृजनशीलता पर ध्यान नहीं दिया ,जबकि देना चाहिए था। कुछ लोगों का मत है कि इनकी रचनाधर्मिता में कोई बड़ा साहित्यिक तत्व दिखाई नहीं देता। चौहान जी ने राष्ट्रीय काव्य धारा की कवयित्री की भूमिका का निर्वाह पूरी निष्ठा के साथ किया है।उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था- देश की स्वाधीनता।देश बचपन से ही उनकी कविताओं और जीवन का हिस्सा था। देश की स्वाधीनता के लिए वे गांधी जी के आह्वान अपनी पढ़ाई छोड़कर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गयी।
देश को स्वाधीन कराने के लिए शक्तिशाली सत्ता से टकराहट,उससे लोहा लेना,देश के नौजवानों का कर्त्तव्य है।
वे कहती हैं-
” कृष्ण मंदिर में प्यारे बन्धु
पधारो निर्भयता के साथ।
तुम्हारे मस्तक पर हो सदा
कृष्ण का वह शुभ चिंतक हाथ।।”
सुभद्रा कुमारी चौहान की सृजन यात्रा में स्वाधीनता आंदोलन के सभी पक्षों राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक को समान महत्व दिया गया। यद्यपि सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा राजनीतिक आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण ऊपरी तौर पर उनका साहित्य राजनीतिक आंदोलन का अधिक पक्षधर सा दिखाई पड़ता है, किन्तु वास्तव में सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक आन्दोलन भी उनके साहित्य में उतना ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है ,जितना कि राजनीतिक आंदोलन।
चौहान जी कक्षा नौवीं तक अपनी पढ़ाई पूरी कर पायी । कुछ दिनों बाद सन् 1919 ई में उनका विवाह हो गया और एक वर्ष बाद पति के साथ गांधी जी के असहयोग आंदोलन में पड़ाव रख दिया। हिंदी के महान साहित्यकार रविनंदन सिंह जी लिखते हैं –
” जब वे इलाहाबाद के क्रास्थवेट स्कूल में कक्षा आठ की छात्रा थी और बोर्डिंग में रहती थी, उसी वर्ष महादेवी वर्मा डायरी में छुपाकर कुछ लिख रही थी। उन्होंने डायरी दिखाने को कहा महादेवी ने संकोचवश नहीं दिखाई।इस पर सुभद्रा कुमारी चौहान ने डायरी छीनकर देख लिया। उसमें कुछ कविताएं थी। सुभद्रा कुमारी चौहान यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई पूरे होस्टल में घूम घूमकर वह डायरी दिखाईं और महादेवी की कविता लिखने का प्रचार किया। इस प्रकार कवयित्री के रूप में महादेवी वर्मा को खोजने का श्रेय सुभद्रा कुमारी चौहान को ही जाता है। दोनों में आजीवन स्नेह बनाए रहा। विवाह के बाद वह जबलपुर रहने लगी। जब भी वे इलाहाबाद आती तो महादेवी जी के घर रूकती
थी। महादेवी वर्मा जब प्रयाग महिला विद्यापीठ में होती तब वह उनकी सहायिका भक्तिन से घंटों बातें करती।”
सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा सादगी से भरी हुई थी। 15 फरवरी की तिथि को 44 वर्ष की आयु भी एक बच्चे को बचाने के चक्कर में सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
अतः सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने साहित्य और सक्रिय भागीदारी द्वारा स्वाधीनता आंदोलन में जो अभूतपूर्व योगदान दिया,वह उन्हें एक राष्ट्रीय कवयित्री, समाज सुधारक और सच्ची स्वाधीनता सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित करने में पूर्णतः सक्षम और समर्थ है।उनकी सृजनशीलता देश के जन -जन के लिए सदैव एक बड़ा प्रेरणास्रोत रहेगा।