पुस्तकों से दोस्ती का सिलसिला शुरू करें, घर में बनायें पुस्तकालय
इंटरनेट से पढ़ने की प्रवृत्ति में आया बदलाव : डॉ. चौहान
करनाल 24 अप्रैल ( पी एस सग्गू)
क्या इंटरनेट ने हमारी रीडिंग हैबिट्स को प्रभावित किया है? क्या पुस्तकालय जाकर पुस्तकें पढ़ने की प्रवृत्ति कमजोर हुई है? विश्व पुस्तक दिवस पर रेडियो ग्रामोदय के वेकअप करनाल कार्यक्रम में हरियाणा ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने इन्हीं मुद्दों को उठाया। उनके साथ चर्चा में शामिल थे महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के अवकाश प्राप्त लाइब्रेरियन डॉक्टर पी. एन. शर्मा ।
डॉ. परमानंद शर्मा ने कहा कि रिश्तों के बदलते दौर में पुस्तकें ही सच्चा मित्र हैं जो कभी धोखा नहीं देती। इंटरनेट ने हमारी पढ़ने की प्रवृत्ति पर काफी असर डाला है। पुस्तकालय जाकर पुस्तकें पढ़ने में जो आनंद और आत्मसंतुष्टि मिलती है, वह इंटरनेट पर पुस्तकों की सॉफ्ट कॉपी पढ़ने में नहीं। उन्होंने बताया कि पहले शोधार्थी पुस्तकालय जाकर किसी विषय से संबंधित सभी सामग्रियां खंगालते थे और उस पर विस्तृत अध्ययन करते थे, लेकिन अब इंटरनेट की मदद से संबंधित सामग्री के सिर्फ उन्हीं प्रासंगिक अंशों को स्कैन किया जाता है और सिर्फ उतना ही पढ़ा जाता है जितना शोध के लिए आवश्यक है। इस तकनीक के आ जाने से सुगमता तो बढ़ी है, लेकिन यह प्रवृत्ति भविष्य के लिए शुभ नहीं है।
डॉ. चौहान ने भी उनकी इस बात से सहमति जताई कि इंटरनेट से लोगों की रीडिंग हैबिट कमजोर हुई है। उन्होंने कहा कि डिजिटल और ऑडियो बुक के ज्यादा पाठक नहीं हैं। डॉ. चौहान ने बताया कि लोगों और खासकर बच्चों के बौद्धिक विकास और उनमें पढ़ने के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए हरियाणा सरकार की ओर से प्रदेश के विभिन्न गांवों में पुस्तकालय खोलने की योजना है। रेडियो ग्रामोदय भी इस दिशा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की तैयारी में है। उत्तर एवं दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगमों ने गांव में पुस्तकालय के निर्माण के लिए कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सी.एस.आर) के तहत अपने मुनाफे से पैसा दिया है। करनाल के कछुआ गांव में 30- 35 लाख रुपए की लागत से एक पुस्तकालय का निर्माण हुआ है जिसका संचालन ग्राम पंचायत करेगी। देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे पुस्तकालय बन रहे हैं।
डॉ. शर्मा ने पुस्तकालय खोलने के प्रयास का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार का यह प्रयास काबिले तारीफ है। उन्होंने कहा कि लोगों और खासकर बच्चों ने पढ़ने के प्रति चेतना जगाना जरूरी है। जब तक लोगों में पढ़ने के प्रति रुचि नहीं बढ़ती, तब तक बात नहीं बनेगी। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि किसी भी अच्छे स्कूल की बिल्डिंग के किसी बड़े हॉल को वाचनालय बनाया जा सकता है। जिला स्तर पर शिक्षकों और पंचायत सदस्यों की कमेटी बने जिसमें किताबों के चयन पर फैसला हो। बच्चों की मानसिकता और उनकी बौद्धिक सोच विकसित करने के लिहाज से पुस्तकों का चयन किया जाए। इस दिशा में हमें प्रयास करना होगा।
इस पर डॉ. चौहान ने कहा कि किताबों का चयन सही हो, इसके लिए दूरदृष्टि वाले लोगों की समिति का गठन होना चाहिए। डिग्री और डिप्लोमाधारी लोगों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन उनमें पुस्तकें पढ़ने के प्रति ललक का अभाव दिखता है। उन्हें सिर्फ रोजगार पाने से मतलब होता है।
डॉ. शर्मा ने पुस्तक पुस्तकालयों के लिए सस्ती पुस्तकें खरीदने का सुझाव देते हुए कहा कि एनबीटी की पुस्तकें खरीदी जाएं। इससे बच्चों में पढ़ने के प्रति ललक बढेगी। इस दौरान उन्होंने दुर्गादास द्वारा लिखित पुस्तक ‘इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर’ का जिक्र करते हुए कहा कि यह इतनी अच्छी पुस्तक है कि इसे पढ़ने के लिए उन्हें अपने कार्यालय से अवकाश लेना पड़ा था।
डॉ. चौहान ने भी अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि अपने स्कूल के दिनों में वह स्कूल के पुस्तकालय की लगभग सभी किताबें पढ़ चुके थे और पुस्तकालय की लाइब्रेरियन डॉ. कृष्णा नागपाल उन्हें अक्सर नई किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित किया करती थीं। उन्होंने कहा कि पुस्तकों और पुस्तकालयों के मामले में भारत विश्व का अग्रज है। विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को विदेशी आक्रांता बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर नष्ट कर दिया था। यहां पुस्तकों का भंडार इतना ज्यादा था कि आग लगाए जाने के बाद उसे जलकर नष्ट होने में कई महीने लग गए थे।
डॉ. चौहान ने बताया कि डॉ. एस. आर. रंगनाथन को भारत में पुस्तकालय विज्ञान का जनक माना जाता है। उनके जन्म दिवस 12 अगस्त को देश में राष्ट्रीय पुस्तकालय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। उनकी इस बात को आगे बढ़ाते हुए पुस्तकालय विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ. पी. एन. शर्मा ने कहा कि डॉ. एस आर रंगनाथन का भारत के पुस्तकालय विज्ञान में अमूल्य योगदान है। वह गणित के प्रोफेसर थे जिन्हें विश्वविद्यालय के कुलपति ने संयोगवश पुस्तकालय का भी प्रभार दे दिया था। उन्होंने बताया कि डॉ. रंगनाथन ने पुस्तकों के रखरखाव और उनके संग्रह की जो प्रणाली विकसित की उसे अमेरिका सहित आज विश्व भर में अपनाया जाता है।
डॉ शर्मा ने बताया कि जर्मन विद्वान मैक्स म्यूलर ने भारतीय साहित्यिक ग्रंथों के बारे में कहा था कि भारत में साहित्यिक ग्रंथों का इतना विशाल भंडार है कि कई पीढ़ियां में मिलकर पढ़ें तो खत्म नहीं होंगी। प्राचीन पुस्तकालयों का कोई मुकाबला नहीं, लेकिन आधुनिक तकनीक भी जरूरी है। अमेरिका के पुस्तकालयों में सिखों के संबंध में पुस्तकों का इतना विशाल भंडार है जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।
इस अवसर पर ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. चौहान ने लोगों से पुस्तकों से दोस्ती का सिलसिला शुरू करने का आह्वान करते हुए कहा कि हर घर में एक अपना निजी पुस्तकालय अवश्य होना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि घर बनाते समय ही घर में एक पुस्तकालय का प्लान करें और इसे सिर्फ अध्यापक और प्रोफेसर तक ही सीमित ना रखें।