नरेश मेहता का काव्य प्रकृति, प्रेम व सांस्कृतिक चेतना का नूतन दस्तावेज है।
जन्मशताब्दी विशेष पर
डाॅ मुकेश कुमार
हिंदी साहित्य विशेषज्ञ
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भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ,नयी कविता के प्रमुख कवि नरेश मेहता का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।इनका जन्म 15फरवरी 1922ई को मालवा (मध्य प्रदेश) के शाजापुर क़स्बे में हुआ। डॉ बच्चन सिंह जी अपने हिंदी साहित्य के दूसरा इतिहास में लिखते हैं कि -” नरेश के रहने -सहन ,वेश भूषा पर सुरुचिपूर्ण आभिजात्य की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है।वे मालवा के निवासी और काशी के अन्तेर्वासी रहे हैं।”दूसरा सप्तक के अपने व्यक्तव्य में नरेश ने लिखा है कि वह ‘आग’ लिखना चाहते हैं, किंतु उनका व्यक्तिव्य ‘आग’ लिखने से मना करता है।उनकी आरंभिक कविताओं पर ऋग्वैदिक ऋचाओं के आदिम बिंबों का गहरा प्रभाव है। दूसरा सप्तक में संग्रहीत ‘किरण धेनुएं ‘ और उषस संबंधित चार गीत इसके प्रमाण हैं।” ( बच्चन सिंह,हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास,पृ 436)।
नरेश मेहता की काव्य प्रतिभा का सर्वोत्तम निर्दशन उनके प्रबंध काव्य सृजना में हुआ है। मालवा और काशी की छाप के कारण इनकी कविता सांस्कृतिक चेतना की कविता बन गई। मुझे ऐसा लगता है कि नरेश मेहता की वेशभूषा पर कहीं न कहीं सुमित्रानंदन पंत की वेश-भूषा का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इनकी काव्य सृजना में कल्पना के स्थान पर मानवीय संवेदना की छाप दिखाई पड़ती है।
‘मेर समर्पित एकांत ‘ में एक रचना समय देवता।यह दूसरा सप्तक में संग्रहीत है।इस कविता को नरेश ने नयी कविता की पहली लंबी कविता कहा है।(बच्चन सिंह, हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास पृ,436) नरेश मेहता का कवि आरम्भ से ही प्रखर चिंतक के रूप में हमारे सामने आता है।इनका बहुआयामी व्यक्तित्व धर्म -दर्शन -संस्कृति से उसका तादात्म्य स्थापित करना चाहता है। नरेश मेहता परम्परा और आधुनिकता पर के बीच संतुलन बनाए रखने की बात करते हैं।
शबरी जैसी रचना का प्रकाशन 1977 ई में किया।इस रचना का आधार रामायण है। शबरी एक साधारण नारी है।वह निम्नवर्गीय होकर भी संघर्ष करती हुई कैसे आत्मोत्थान करती है। कवि प्रकृति के खुले परिवेश का सुन्दर ढंग से चित्रण करते हैं।
कुल मिलाकर यह कहा जाता है कि नरेश मेहता की काव्य प्रतिभा बहुआयामी रही है। वे रोमानी संस्पर्श वाले क्लासिकल तेवर के प्रयोगशील सृजनकर्ता हैं। इनका सृजन यथार्थ के बोध से लिपटा हुआ नूतन के रंगों से रंजित है। और दो टूक शैली बंकिम छवियों से आलोकित है। उनका सम्पूर्ण साहित्य संवेदनात्मक औदात्य से भरपूर है। यह औदात्य उनके प्रकृति प्रेम और सांस्कृतिक चेतना का गहरा दस्तावेज है।