दास्तान-ए-रोहनात’ नाटक के माध्यम से देश की आजादी में हरियाणा के सूरमाओं की कुर्बानी को किया याद, जबकि पूर्व की सरकारों ने आजादी की लड़ाई के वीरों शहीदों एवं रणबांकुरों की कुर्बानियों को छिपाने का किया काम : मेयर रेनू बाला गुप्ता
स्थानीय गुरू नानक खालसा कॉलेज के सभागार में ‘दास्तान-ए-रोहनात’ नाटक का मंचन, मेयर रेनू बाला गुप्ता, जिलाध्यक्ष योगेन्द्र राणा, सीएम प्रतिनिधि संजय बठला, मीडिया कोर्डिनेटर जगमोहन आनंद ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का किया शुभारंभ।
करनाल 29 सितम्बर ( पी एस सग्गू)
आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला में सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग हरियाणा के सौजन्य से वीरवार को गुरू नानक खालासा कॉलेज के सभागार में स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा से जुड़ी बड़ी घटना पर हिसार के अभिन्य रंगमंच के कलाकारों ने मनीष जोशी द्वारा निर्देशित व यशराज शर्मा द्वारा लिखित ‘दास्तान-ए-रोहनातÓ नाटक का जीवंत मंचन किया। कलाकारों ने नाटक के हर पात्र को बड़ी ही संजीदगी और जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया। कलाकारों की हर प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों के रोंगटे खड़े कर दिए और युवा पीढ़ी को देशभक्ति का संदेश दिया।
कार्यक्रम में मेयर रेनू बाला गुप्ता ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की तथा विशिष्ट अतिथि के तौर पर भाजपा जिलाध्यक्ष योगेन्द्र राणा, सीएम प्रतिनिधि संजय बठला, मीडिया कोर्डिनेटर जगमोहन आनंद शामिल हुए। अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत रूप से शुभारंभ किया। सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग के उप निदेशक एवं डीआईपीआरओ देवेन्द्र शर्मा व एआईपीआरओ रघुबीर सिंह ने अतिथियों को पुष्प गुच्छ व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
इस मौके पर मेयर रेनू बाला गुप्ता ने कहा कि ‘दास्तान-ए-रोहनात’ नाटक के माध्यम से देश की आजादी में हरियाणा के सूरमाओं की कुर्बानी को किया जा रहा है। जबकि पूर्व की सरकारों ने आजादी की लड़ाई के वीरों शहीदों एवं रणबांकुरों की कुर्बानियों को छिपाने का काम किया। उन्होंने बताया कि रोहनात गांव में 23 मार्च 2018 से पहले कभी भी आजादी का जश्न नहीं मनाया गया था और न ही गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था, क्योंकि यहां के ग्रामीणों की मांग को पूरा करने के लिए किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। इसी रोष स्वरूप यहां के लोगों ने आजादी का जश्न नहीं मनाया था। लोगों को यह मलाल रहा कि देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ खो देने के बावजूद उन्हें वह जमीन तक नहीं मिली, जिसके लिए वे लड़ाई लड़ते रहे। इसी बात से खफा होकर ग्रामीणों ने यहां कभी झंडा नहीं फहराया था। कुछ समय पहले तक भी कुछ जमीन पर विवाद रहा। वर्तमान सरकार ने इस विवाद को निपटवाया। इसके बाद 23 मार्च 2018 को पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गांव के बुजुर्ग के हाथों राष्ट्रीय ध्वज फहराकर यहां के लोगों को गुलामी के अहसास से आजाद करवाया। उन्होंने कहा कि देश के अनेक सपूत ऐसे थे, जिनके नाम इतिहास में दर्ज नहीं हो पाए। जाने-अनजाने उन्हें भुला दिया गया। ऐसे ही दो योद्धा है नौंदाराम और बिरड़ा दास। उनके नाम इतिहास में दर्ज नहीं हो पाए, लेकिन ये योद्धा देश के लिए अपना फर्ज निभा गए। रोहनात गांव के ये वीर अंग्रेजों के जुल्म का शिकार हुए। नौंदाराम को अंग्रेजों ने तोप के गोले से उड़ा दिया। वहीं बिरड़ा दास को मेख ठोक-ठोक कर मार दिया। कहा जाता है कि मंगल पांडे भी इनसे मिलने आते थे और वहां के लोगों को संगठित करने में इनका बड़ा योगदान रहा। इन्हीं के योगदान पर नाटक दास्तान ए रोहनात आधारित है।
नाटक का सार
वो 29 मई 1857 की तारीख थी। हरियाणा के रोहनात गांव में ब्रिटिश फ़ौज ने बदला लेने के इरादे से एक बर्बर खूनखराबे को अंजाम दिया था। बदले की आग में ईस्ट इंडिया कंपनी के घुड़सवार सैनिकों ने पूरे गांव को नष्ट कर दिया। लोग गांव छोड़कर भागने लगे और पीछे रह गई वो तपती धरती जिस पर दशकों तक कोई आबादी नहीं बसी। दरअसल यह 1857 के गदर या सैनिक विद्रोह, जिसे स्वतंत्रता की पहली लड़ाई भी कहते हैं, के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के कत्लेआम की जवाबी कार्रवाई थी।