डा. बीके ठाकुर ने आंखें दान करने की प्रेरणा देकर हजारों की जिंदगी कर दी रोशन
अगले जन्म में अंधे पैदा होने के भ्रम को दूर कर खोला माधव नेत्र बैंक, साल में 500 करते हैं नेत्रदान
करनाल 3 दिसंब ( पी एस सग्गू)
कोई भी काम दुनिया में आसान नहीं होता खासतौर पर वो काम जिससे समाज की दशा और दिशा बदलती हो, जिसमे धर्म के नाम पर अंधविश्वास जुड़ें हो, ऐसी प्रथाओं को बदलने के लिए कड़ी चुनौतियों के साथ- साथ लोगो की कड़वी , तीखी और बेसिर पैर की बातों को भी सहना पड़ता है। हम बात कर रहे हैं माधव नेत्र बैंक के अग्रज डा. बीके ठाकुर यानी डा. भरत ठाकुर की। श्मशान में जब वो किसी की लाश को जलता देखते मन में ये टीस उठती कि बेशकीमती आंखें भी जल गई और मुर्दा शरीर में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण शारीरिक अंग भी। आंखें किसी को नई रोशनी दे सकती थी और शरीर के महत्वपूर्ण अंग किसी की उम्र बढ़ाकर नवजीवन। खैर एक दिन उन्होंने दृढ़ निश्चय करके अपने मन की बात डा. एनपी सिंह, कपिल अत्रेजा, पंकज भारती, डा. आशीष, डा. चंद्र चावला, डा. श्याम वधवा, संजय मदान सहित 11-12 संजीदा लोगों के समक्ष रखी तो सन 2000 में करनाल में दानवीर कर्ण नेत्र कोष बैंक की राहें खुल गई। सन 2005 में आरएसएस के संस्थापक गुरु जी माधव राव सदाशिव गोलवरकर के नाम पर इसका नाम माधव नेत्र बैंक रखा गया। लेकिन शुरू में लोग अपने मृतक परिजनों की आंखें इसलिए नहीं निकालने देते थे क्योंकि उनके मन में ये भ्रम था कि इस जन्म में आंखें दान करने से अगले जन्म में उनके परिजन अंधे पैदा होंगे यानी उन्हें आंखें नहीं मिलेंगी और घोर पाप होगा।
इस भ्रम को दूर करने में डा. बीके ठाकुर और पूरी टीम को धार्मिक कट्टरता से जुड़े महिला पुरुषों से जूझना पड़ा, सन 2000 में दानवीर कर्ण नेत्र कोष बैंक को सफलता नहीं मिली, इसलिए नाम बदलने के बाद यानी माधव नेत्र बैंक होने के बाद धर्मगुरुओं के सहारे से बात बनने लगी। सभी धर्मगुरु मसलन सनातन धर्म, आर्य समाज, सिख समाज आदि सभी के माध्यम से लोगों को मरणोपरांत नेत्र दान की प्रेरणा दी गई और ये गाढ़े तरीके से समझाई गई कि मरणोपरांत आखें निकल जाने के बाद आदमी अगले जन्म में अंधा पैदा नहीं होता बल्कि उसकी आंखों से दो घर रोशन होते हैं क्योंकि एक इंसान की दो आंखें दो लोगो को लगाई जाती हैं जिससे उनकी अंधेरी दुनिया रोशनी सी जगमगाती है। डा. बीके ठाकुर की टीम व धर्मगुरुओं के समझाने के बाद करनाल व आसपास की आंखें दान करने की प्रतिवर्ष औसत 100 के करीब होने लगी और अब देखते-देखते 500 आंखें प्रतिवर्ष डोनेट होती हैं। असल में आल इंडिया संस्था सक्षम के बैनर तले सबसे पहले गुरु जी के नाम पर माधव नेत्र बैंक की करनाल, अंबाला व नागपुर में शाखाएं खुलीं। दयालपुरा गेट के प्रसिद्ध डॉक्टर जगन्नाथ के छोटे सुपुत्र डा. बीके ठाकुर की मानें तो पूरे हिंदुस्तान में आई डोनेशन की 1100 शाखाएं खुलीं, जिसमे से 900 बंद हो चुकी हैं, 200 में से भी केवल 50 पूरी तरह एक्टिव हैं। कोविड के दौरान भी कई शाखाएं बंद हुई। हरियाणा के हर जिले में 700-800 लोग नेत्रहीन हैं और पूरे प्रदेश में यह संख्या 15000 के करीब है।
मेहनत नहीं करना चाहते कर्मी, इसलिए नेत्र बैंक हो रहे बंद
आई डोनेशन बैंक खोलने वालों को सरकारी सुविधाएं, पैसा मिला लेकिन ये काम देर सवेर का है, मौत बताकर नहीं आती, रात को भी मौके पर जाना पड़ता है और अल सुबह नींद त्यागनी पड़ती है, जबकि देश-प्रदेश में अधिकतर बंद हुए आईबैंक, कर्मियों के समय पर मौके पर ना पहुंचने के कारण बंद हो गए। करनाल माधव नेत्र बैंक के साथी चरणजीत बाली, राजकुमार, अनु मदान व राजीव चौधरी, मिसेज चौधरी सहित कई ऐसे साथी हैं जो एक आवाज पर मौके पर पहुंचते हैं, उनमे सेवा भावना है, इसी कारण से करनाल का माधव बैंक नेत्र बैंक करनाल व आसपास आगे बढ़ रहा है। यही नहीं सभी श्मशान घाट के पदाधिकारियों ने इस नेक काम में हमारा दिल से साथ दिया है।
अंधत्व निवारण पर तीन दिसंबर को गुडगांव में कार्यशाला
आल इंडिया आईबैंक एसोसिएशन के राष्ट्रीय को-कन्वीनर डा. बीके ठाकुर तीन दिसंबर को गुड़गांव के मानेसर में अंधत्व निवारण पर होने जा रही कार्यशाला में रवाना हो गए। इसमे अंधत्व निवारण पर अपने अनुभव साझा करेंगे और देश के दूर दराज इलाकों के विशेषज्ञों के अनुभव सुनेंगे। अंधत्व निवारण में त्वरित क्या कदम उठाए जा सकते हैं, सरकार इसमें क्या मदद कर सकती है, इस पर एसोसिएशन के स्तर पर सरकार से आग्रह करेंगे, यही नहीं आई बैंक एक्टिव कैसे हों, इस पर भी चिंतन मंथन होगा।