जलंधर का वध होते ही देवताओं ने की शिव की जय जयकार कार्तिक मास कथा में पंडित चेतन देव ने जलंधर व शिव के युद्ध का वर्णन

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जलंधर का वध होते ही देवताओं ने की शिव की जय जयकार
कार्तिक मास कथा में पंडित चेतन देव ने जलंधर व शिव के युद्ध का वर्णन
करनाल 18 अक्टूबर ( पी एस सग्गू)

उत्तम औषद्यालय के माता रामप्यारी मंदिर में चल रही कार्तिक मास कथा का शुभारंभ हवन यज्ञ से हुआ। जिसमें वैद्य देवेंद्र बतरा व उनकी पत्नी दर्शना बतरा समेत सभी श्रद्धालुओं ने आहूति डाली और विश्व कल्याण की कामना मांगी। भंडारा कमेटी के प्रधान भारत भूषण काकू ने कार्यक्रम का संचालन किया। मंगलवार को पंडित चेतन देव ने जलंधर और भगवान शंकर के बीच हुए युद्ध का वृतांत सुनाया । उनके साथ पंडित शेखर शर्मा भी मौजूद रहे। पंडित चेतन देव ने कहा कि एक दिन देवर्षि नारद जलंधर सभा में पधारे। जलंधर ने उनका स्वागत-सत्कार किया। नारद जी बोले दैत्यराज! इस समय समस्त ऐश्वर्य तुम्हें उपलब्ध हैं। किंतु एक चीज की कमी है। जलंधर बोला कमी, किस चीज की कमी है देवर्षि! सब कुछ तो मेरे पास मौजूद है। नारद बोले एक ऐसी सुंदरी की कमी है, जो सुंदर होते हुए भी सर्वगुण संपन्न हो। हालांकि तुम्हारी पत्नी वृंदा स्वयं भी बहुत सुंदर है किंतु शिव की पत्नी पार्वती की बात ही कुछ और है। जलंधर बोला यदि ऐसा है तो देवर्षि मैं पार्वती को जरूर अपनी पत्नी बनाऊंगा। मैं आज ही अपनी सेना को कैलाश पर चढ़ाई करने का आदेश देता हूं। मतिमंद जलंधर अपनी सेना लेकर कैलाश पर्वत पर टूट पड़ा। उसकी सेना और शिव गणों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। आखिर शिव के गण युद्ध भूमि छोडक़र भाग निकले। विवश होकर भगवान शिव को युद्ध भूमि में जाना पड़ा। अपने स्वामी की उपस्थिति में शिव गणों का उत्साह बढ़ गया। वे तीव्र वेग से दैत्य सेना पर टूट पड़े और उनका संहार करना शुरू कर दिया। शिव जलंधर के सम्मुख आ डटे। दोनों में विकट युद्ध छिड़ गया। दूसरी ओर भगवान विष्णु अपनी कुछ और ही माया रच रहे थे। जलंधर की पत्नी वृंदा एक महान पतिव्रता नारी थी। विष्णु ने जलंधर का वेश धारण किया और उसके शयनागार में जा पहुंचे7 उन्होंने वृंदा का आलिंगन किया। लेकिन वृंदा को यह आभास हो गया कि उसके पति का वेशधारी यह व्यक्ति उसका पति नहीं है। अत: कडक़कर बोली – कौन है तू?।
विष्णु अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और हंसते हुए बोले-मुझे बहुत खेद है वृंदा! लेकिन ऐसा करना आवश्यक हो गया था7 तेरा पति तेरे ही कारण अजेय था। अब उसे मारने में भगवान शिव को कोई परेशानी नहीं होगी। वृंदा रोते हुए बोली-आपने मेरे साथ ऐसा विश्वासघात क्यों किया प्रभु! मेरे पति ने तो आपके आतिथ्य सत्कार में भी कोई कमी नहीं छोड़ी थी।
भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा- तुम वास्तव में ही एक पूज्य नारी हो वृंदा! लेकिन हर आतताई का एक न एक दिन अंत होता ही है। तुम्हारे पति के पापों का घड़ा भर चुका है। उसका अंत समय निकट आ पहुंचा है। मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि आज से सारे संसार में तुम पूजी जाओगी। स्त्रियां तुम्हारी पूजा किया करेंगी। पश्चाताप की अग्नि में जलती हुई वृंदा अग्नि में कूद पड़ी और देखते ही देखते भस्म हो गई। उसके शरीर का तेज निकलकर पार्वती के शरीर में प्रविष्ट हो गया। देवताओं ने पुष्प वर्षा की।
वृंदा के अग्नि में भस्म होते ही जलंधर का तेज घट गया। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसका मस्तिष्क काट दिया।  जलंधर के मरते ही उसका वह तेज, जिससे वह आज तक अजेय था, शिव के शरीर में प्रविष्ट हो गया। दैत्य सेना घबराकर भाग निकली। देवताओं ने शिव की ‘जय-जयकार’ की। इंद्र ने पुन: अपना सिंहासन प्राप्त कर लिया और कुछ काल बाद सर्वत्र अमन चैन व्याप्त हो गया। कथा का लाइव प्रसारण सचिन क्वात्रा ने किया। अशोक पोपली ने ढोलकी पर समा बांधा।

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